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Deepti parmeshvari
दीप्ति 'परमेश्वरी ' सिंह
एकम जीवनम, एकः अवसर
वे जिन्हें अपने आसपास के अंधियारों को देखकर अपने हिस्से की रोशनी अखरती है, वे हमेशा एक कोशिश में लगे रहते हैं। कोशिश दूसरों के आंगन को भी रोशन करने की। और यदि उनके नाम में ही उजियारा जुड़ा हो तो रोशनी फ़ैलाने का ज़ज़्बा भीतर से स्वतः निकलता है। हर तूफान का सामना कर साहस के साथ खुद और समाज को प्रदीप्त रखने के इसी ज़ज़्बे का नाम है दीप्ति परमे वरी सिंह।
दीप्ति परमेश्वरी सिंह ऐसा ही एक नाम है। दीप्ति सिंह पिछले कई दशकों से समाज के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रख अपनी भूमिका खुद तय कर ख़ामोशी से अपने ध्येय में जुटी हैं। ग्वालियर में जन्मी दीप्ति की परवरिश मध्यप्रदेश के कई शहरों में हुई। जिसका कारण पिता की सरकारी नौकरी था। इन्होंने अपने जीवनकाल का बड़ा हिस्सा इंदौर, जबलपुर और रायपुर में बिताया।
व्यवहार में साफगोई ने उन्हें व्यावसायिक क्षेत्र में भी एक पहचान दी है। देश में चल रहे किसी भी मुद्दे पर वे बेबाकी से अपनी राय रखती हैं। वे तीन कंपनियों की संस्थापक निदेशक हैं।
वे एक संयत और तर्कों के साथ बात रखने वाली ओजस्वी वक्ता भी हैं। यही वजह है कि विभिन्न न्यूज़ चैनलों व सामजिक आयोजनों में दीप्ति को मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया जाता है।
विभिन्न क्षेत्रों में उनके कामों के कारण शहर और प्रदेश में कई अवसरों पर उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। जिनमें महिला दिवस, कोरोना वारियर, लायंस क्लब के साथ कई संस्थाएं शामिल हैं।
दीप्ति परमेश्वरी ये मानती हैं कि संस्कृति और संस्कार की बुनियाद यही बुजुर्ग हैं। इनकी साज संभाल बेहद जरूरी है । इसी विचार के चलते उन्होंने प्रदेश के कई शहरों के वृद्धाश्रमों में हर तरह से सेवा दी है । कुछ वृद्धाश्रमों को संचालित करने में उनकी मुख्य भूमिका है ।
मां नर्मदा में आस्था
मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी कही जाने वाली पुण्य सलिला मां नर्मदा के सान्निध्य में को हमेशा सुकून का अहसास होता है । दीप्ति परमेश्वरी जी नर्मदाजी के तटों के शुद्धिकरण अभियान से जुड़ने को हमेशा तत्पर रही हैं।
वृक्षकन्या
पर्यावरण को लेकर वे हमेशा सजग रही हैं। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि प्रदेश के बहार भी कई शहरों में पौधरोपण अभियान चलाया । मध्यप्रदेश, छस्तीसगढ़ा आँध्रप्रदेश में सैकड़ों कार्यकर्ता उनके साथ इस अभियान में जुड़े रहे। इस अभियान के साथ ही उनके नाम में वृक्षकन्या भी जुड़ गया।
योग और आध्यात्म
वे आधुनिक होते हुए भी आंतरिक रूप से भारतीय दर्शन और मूल्यों की पैरोकार हैं। योग और अध्यात्म से उनका जुड़ाव उनके व्यक्तित्व का एक ऐसा पहलू है जिसकी आभा उनके दैदीप्यमान चेहरे और कामों में साफ झलकती है।
बचपन से तेजस्वी एवं गुणी
दीप्ति परमेश्वरी जी छुटपन से ही वे दूसरे बच्चों से कुछ अलग थीं। ये अलग होना उनके चेहरे पर तेज से साफ़ दिखाई देता है। उसी तेजस्विता देखकर बनारस से आए पंडितजी ने दीप्ति सिंह को ‘परमेश्वरी’ नाम दिया। तभी से इनका नाम हो गया दीप्ती परमेश्वरी सिंह। इनका विवाह 21 वर्ष की उम्र में ही हो गया था लेकिन नई चीजें जानने और समझने की ललक के चलते इन्होंने ग्वालियर के एमएलबी कॉलेज में विवाह के एक साल बाद दाखिला लियाऔर आज एक मुकाम हासिल किया |
शिक्षा
ज्ञान प्राप्ति की ललक उनमें हमेशा बानी रही। 2001 में साइकोलॉजी जैसे विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। दीप्ति को उच्च शिक्षा हासिल करने का एक जूनून सा रहा। लेकिन किस्मत आपको उसी राह पर ले जाती है जो सपने आप बचपन से अपने भीतर संजोकर रखते हैं। बस, वे निकल पड़ीं समाज के अलग-अलग वर्ग में रोशनी फैलाने।
सामजिक संस्था
समाज सेवा के बढ़ते दायरे के बाद दीप्ति परमेश्वरी सिंह को महसूस हुआ कि इस काम को संगठित तरीके से करने का वक्त आ गया है। साल 2010 में उन्होंने संस्था ‘द पृथ्वी’ का गठन किया। यह संस्था पर्यावरण, स्वास्थ, शिक्षा और सामाजिक विकास के लिए काम करती है। ‘द पृथ्वी’ भोपाल में सामाजिक मुद्दों और शिक्षा के लिए बेहतर काम कर रही है।
पर्यावरण/जीवन संरक्षण
विभिन्न अवसरों पर स्कूलों में और अन्य संस्थाओं में पौधारोपण करना और पौधों को विकसित होने तक उनकी देखभाल करना, उनका महत्व और प्रकृति से प्रेम यह संस्था और इसके वॉलेंटियर सिखा रहे हैं। इस मुहिम में उन्होंने कई संस्थानों के साथ कई प्रबुद्धजनों को भी जोड़ा है। द पृथ्वी और उसमें तयशुदा कार्यक्रमों में हिस्सा लेने तक दीप्ती परमेश्वरीजी सीमित नहीं हैं। उनके लिए पर्यावणरण के मायने जन, जल, जंगल, जमीन, जानवर, सबके जीने/पनपने का अधिकार है। यही कारण हैं कि वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित हैं। समाज में पुलिस और जनता के बीच बेहतर सामंजस्य के लिए भी संस्था ‘द पृथ्वी’ काम करती है।
सेवा का ज़ज़्बा
दीप्ति परमेश्वरी सुविधाओं से वंचित, बेसहारा लोगों के लिए बहुत कुछ करना चाहती हैं। हमेशा से उनका मकसद रहा जरूरतमंदों तक सहायता पहुंचे। वे लोग जो सच में सहायता के हकदार हैं उन्हें सहायता मिले। वे इस काम को बखूबी निभा रही हैं।
काउंसलिंग
सन 2009-10 में बॉम्बे हॉस्पिटल इंदौर में बतौर साइकोलॉजिकल काउंसलर काम करते हुए कई तरह के मेंटल डिसऑर्डर केसेस को केस स्टडी के रूप में लिया और इसे बतौर कैम्पेन काम करना शुरू किया। मरीजों के साथ उनके परिजनों की काउंसलिंग भी की। मरीजों और उनके परिवारों के लिए वे एक सपोर्ट सिस्टम के रूप में खड़ी रहीं।