किसी काम से आज करीब 11:00 बजे घर से बाहर निकलना हुआ गर्मी की वजह से सडकें वीरान थीं। तपिश इतनी ज्यादा थी कि लग रहा था झुलस ही जाएंगे। अपनी हरियाली और सुकून भरे वातावरण के लिए जाना जाने वाला हमारा शहर भोपाल 45 डिग्री तापमान को बस छूने ही वाला है।
यहां के बाशिंदों के साथ खुद इस शहर के लिए यह बहुत सोचनीय स्थिति है लेकिन इस बात से बेपरवाह हम सब अपने-अपने कार्यक्रमों में जुटे हुए हैं। पर्यावरण और उसकी बदहाली पर हम सभी का ध्यान है लेकिन हम नजरें बचा कर उसे हर रोज लगातार नुकसान पहुंचाते जा रहे हैं। वैसे ही जैसे एक ख़स्ता इमारत से रोजाना एक-एक ईंट लगातार निकालते रहना।
24 घंटे सोशल मीडिया पर अपडेट रहने वाले हम सब उस मैसेज को अनदेखा करते हैं जिसमें वह कहता है 60 डिग्री पर मानव शरीर जलने लगता है। यदि हम अपनी जनरेशन की बात करें तो हमने 30-32 डिग्री से तापमान 42-43 होते देखा है और यही रफ्तार रही तो 60 डिग्री पहुंचना बहुत बड़ी बात नहीं। जिस गति से हम दोहन कर रहे हैं प्रकृति का उसी रफ्तार से तापमान भी बढ़ेगा।
एक बड़ा काम करने की जरूरत है जो बहुत आसानी से कोई भी कर सकता है। अपने घरों में पेड़ों को जगह दो। जमीन में पौधे उगाए जो जड़ों के जरिए बारिश का पानी रोक सके। जो जमीन को नम रखें। लेकिन हम जिस मानसिकता को लेकर जी रहे हैं उसमें गर्मी बढ़ने पर एसी खरीदना आसान विकल्प माना जाता है बजाय इसके कि हम खुद पौधा उगाये।पेड़ बनने में उसकी मदद करें।
सड़क से टकराती घर की बाउंड्री. .और बड़ा.. और बड़ा घर होने की चाहत और प्रकृति से सिर्फ लेते रहने की आदत हमारी सांसे फुला रही है। इस बार वातावरण में जो तपिश है वह संदेश है प्रकृति का। संभल जाओ वरना सिर्फ गर्मी नहीं पूरा साल यही रहने वाला है हाल। हम खुद पेड़ उगाये और विरोध करें पेड़ों की कटाई का और जंगल की कटाई का। हमें विचार करना होगा प्रकृति से खत्म होता हरा रंग हमारे जीवन की रंगत खत्म कर देगा। (वृक्षकन्या )